सोच रहा हुँ थोड़ा बदल के देखूँ फर्ज़ की क़ैद से निकल के देखूँ। सोच रहा हुँ थोड़ा बदल के देखूँ फर्ज़ की क़ैद से निकल के देखूँ।
यह ज़िन्दगी है कई रंग दिखलायेगी । यह ज़िन्दगी है कई रंग दिखलायेगी ।
उस पर मेरी उस पर मेरी
इंसानियत के बारे में एक कविता...। इंसानियत के बारे में एक कविता...।
मौसम...। मौसम...।
इंसान भटकता जा रहा...। इंसान भटकता जा रहा...।